Monday, December 25, 2006

ઉર્મિ-સાગર

તરકશ પર રજુ થયેલ ઉર્મિ-સાગરની એક રચનાનું હિંદી રુપાંતર
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मैं तो न मांगु कुछ भी तुमसे,
तुम ही दो, यदि हो अंतः करण!

इस नश्वर भावना का क्या करूं?
दो मुझे ये शाश्वत चरण!

सजीव कुछ भी अब इच्छित नहीं,
बस दो मुझे, अब एक अवतरण!

गणित में समझुं पक्का तुम्हें,
झुठला दो अब यह समीकरण,

दो अगर, तुम एक हुंडी लिखकर,
तो करुं मैं भी जग का अनुकरण!

आ अब एक मनुष्य बनकर,
तो करुं मैं भी अनुशरण!

हाथ बढाकर भी क्या करुं मैं?
कब देते हो तुम अकारण?!

देना ही हो तुम्हें अगर कुछ,
तो दे दो, बस एक ऊर्मि-झरण!

तुम ही दो, यदि हो अंतः करण!
मैं तो न मांगु- कारण-अकारण!

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